अमलतास मुझे बहुत भाता है, खासकर मई जून में जब वह पीले फूलों की चादर ओढ लेता है. कुछ् साल बाद हमारे अमलतास पर भी ढेर सारे फूल आयेंगे और पर्यावरण खुश होगा.
Monday, June 7, 2010
अमलतास और पाँच जून
पाँच जून अर्थात पर्यावरण दिवस. इस दिन सरकार क्या करती है पता नहीं पर लोगों को अपने स्तर पर कोशिश करते पाया. सम्यक ने भी अपनी दोस्तों के साथ एक अमलतास रोपा. हमने कुछ साल पहले एक 5 जून को जालंधर में भी एक कीनू का पौधा रोपा था. अब तो बहुत बड़ा हो गया होगा और फल भी देता होगा.
Thursday, April 15, 2010
हिन्दी के लेखक बनाम अंग्रेजी के लेखक
देखा, आज अंग्रेजी लेखक जैफ्री आर्चर का जन्म दिन है, तो मुझे याद आयी उनसे मुलाकात. 2008 में अपनी नयी किताब “ए प्रिजनर ऑफ बर्थ” के प्रसार के लिये टुअर पर. मैंने उनसे पूछा, आप बच्चों के लिये क्यों नहीं लिखते. उन्होंने प्यारा सा जबाब दिया, मेरे लिये तो सब बच्चे हैं.उन्हें जन्मदिन की शुभकामनायें.
लेकिन, इस प्रकार के बुक प्रमोशन टुअर हिन्दी लेखकों के क्यों नहीं होते?
लेकिन, इस प्रकार के बुक प्रमोशन टुअर हिन्दी लेखकों के क्यों नहीं होते?
Sunday, February 14, 2010
ये जगह वो जगह
इन दिनों फिर मेरे पापा के ट्रांसफर की चर्चा है. उनका ट्रांसफर हर कुछ सालों में होता रहता है. मैं चौदह साल की हूँ और इन सालों में पाँच जगह बदलते देखी हैं मैंने. कुछ दिन पिछली जगह की याद आती है फिर भूल जाती हूँ. पहली बार जब इलाहाबाद से कानपुर पहुँचे तो मैंने पापा से पूछा था कि हम दोस्त क्यों बनाते हैं यदि हमें उन्हें छोड़ना ही होता है.
2004 में मैं एक ऐसी जगह गयी जहाँ मेरे चार साल खूब मजेदार दिन बीते. ये थी पंजाब की जालंधर. मुझे वहाँ की जगहों से, स्कूल से, सहपाठ्यों से और टीचरस से इतना लगाव हो गया कि वहाँ से एक दिन भी दूर जाना अच्छा नहीं लगता था. रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा. प्रति दिन सोचती आज ऑटो में, स्कूल में क्या होगा. खाली समय में क्या खेंलूंगी. मुझे लगता था कि अब जीवन भर जालंधर रहुंगी.
फिर आया 2008 और मुझे पता चला कि पापा का ट्रांसफर हो सकता है. बस इस बात को सुनते ही मैं दुखी हो गयी. मैं, भगवान से मनाती कि ये न हो. एक्जाम हो रहे थे तो मैं उनमें व्यस्त हो गयी. आखिरी एक्जाम के दिन हम खूब खुश थे, एक दो दिन बाद होली थी तो एक दूसरे के रंग लगाया. पापा मुझे स्कूल लेने आये खबर मिली कि हमारा ट्रांसफर लखनऊ हो गया है. मैं खूब दुखी हुयी और रो पड़ी. घर आकर सब फ्रेंडस को फोन किया तो वे सब भी दुखी हुयीं. एक दिन फ्रेंड के जन्मदिन पर सबसे मिली और फिर हमारे जाने का दिन आगया. लकनऊ आयी तो नया स्कूल मिला. शुरू शुरू में क्लास बिल्कुल जंगल लगती थी पर कब मैं भी जंगली बन गयी पता ही नहीं चला.
और पुराने फ्रेंडस ! अरे भाई टेक्नोलोजी ने दुनियां को बेहद छोटा कर दिया है, हम रोज चैट करते हैं और लगता है अभी भी साथ हैं.
2004 में मैं एक ऐसी जगह गयी जहाँ मेरे चार साल खूब मजेदार दिन बीते. ये थी पंजाब की जालंधर. मुझे वहाँ की जगहों से, स्कूल से, सहपाठ्यों से और टीचरस से इतना लगाव हो गया कि वहाँ से एक दिन भी दूर जाना अच्छा नहीं लगता था. रहा है दुश्मन दौरे जहां हमारा. प्रति दिन सोचती आज ऑटो में, स्कूल में क्या होगा. खाली समय में क्या खेंलूंगी. मुझे लगता था कि अब जीवन भर जालंधर रहुंगी.
फिर आया 2008 और मुझे पता चला कि पापा का ट्रांसफर हो सकता है. बस इस बात को सुनते ही मैं दुखी हो गयी. मैं, भगवान से मनाती कि ये न हो. एक्जाम हो रहे थे तो मैं उनमें व्यस्त हो गयी. आखिरी एक्जाम के दिन हम खूब खुश थे, एक दो दिन बाद होली थी तो एक दूसरे के रंग लगाया. पापा मुझे स्कूल लेने आये खबर मिली कि हमारा ट्रांसफर लखनऊ हो गया है. मैं खूब दुखी हुयी और रो पड़ी. घर आकर सब फ्रेंडस को फोन किया तो वे सब भी दुखी हुयीं. एक दिन फ्रेंड के जन्मदिन पर सबसे मिली और फिर हमारे जाने का दिन आगया. लकनऊ आयी तो नया स्कूल मिला. शुरू शुरू में क्लास बिल्कुल जंगल लगती थी पर कब मैं भी जंगली बन गयी पता ही नहीं चला.
और पुराने फ्रेंडस ! अरे भाई टेक्नोलोजी ने दुनियां को बेहद छोटा कर दिया है, हम रोज चैट करते हैं और लगता है अभी भी साथ हैं.
Friday, January 8, 2010
Wednesday, December 2, 2009
हर किताब एक नई दुनियां डिस्कवर करती है.
उधर सरकार कहती है कि बच्चों से एक्ज़ाम का बोझ कम करेंगे पर इधर स्कूल हैं कि हर कुछ दिन बाद एक्जाम और टैस्ट लेते रहते हैं. कोई वीकली तो कोई मंथली. हर सोमवार को कुछ बच्चों को बस स्टाप पर स्कूल बस का इंतजार करते करते किताब में घुसे देखती हूँ तो लगता है एक्जाम कम होने की जगह बढ़ते जा रहे हैं.आज कल कैट के चर्चे आम हैं. बड़ा डर लगता है, आज क्लास में कंपीट करो, कल बोर्ड में और परसों ये कैट सैट. क्या कभी इन एक्जाम से फुरसत होगी. पापा को आये दिन प्रेजेंटेशन बनाते देखते हूँ तो लगता है, एक्जाम तो नौकरी में भी पीछा नहीं छोड़ते.खैर, कल मेरे दूसरे टर्म एक्जाम खत्म हुये हैं और मैं खुश हूँ. एक दो दिन पढाई से मुक्ति. कल किताब की दुकान गई और कई सारी किताब खरीदी. अरे पढाई की नहीं, कहानी की, नैंसी ड्रू की क्लोज एनकाउंटरस और एनिड ब्लाएटन की नोटियस्ट गर्ल. लेकिन उन्हें देख पापा कहने लगे, अरे बेटा अपने आप को अपग्रेड करो. कुछ सीरियस पढा करो. डिस्कवरी आफ इंडिया पढो. मैंने कहा, पापा डिस्कवर ही तो हो रहा है सब कुछ, इंडिया हो या दुनियां. हर किताब एक नई दुनियां डिस्कवर करती है.सम्यक भी एक किताब लाई है, एनिड ब्लाएटन की एडवेंचरस आफ विशिंग चैयर. कास हमारे पास भी एक ऐसी चैयर होती जो हमारी विश पूरी करती. क्या विश ? ये तो पता नहीं. अभी तो मुझमें और सम्यक में कम्पटीशन है, कौन पहले किताब पूरी करता है. केवल आज का दिन है, कल से तो फिर वही ब्राउन कवर की टैक्स्ट बुक पढनी हैं.
Tuesday, December 1, 2009
आज एक्जाम खत्म हो गये
उधर सरकार कहती है कि बच्चों से एक्जाम का बोझ कम करेंगे पर इधर स्कूल हैं कि हर कुछ दिन बाड़ एक्जाम और टैस्ट लेते रहते हैं. कोई वीकली तो कोई मंथली. हर सोमवार को कुछ बच्चों को बस स्टाप पर स्कूल बस का इंतजार करते करते किताब में घुसे देखती हूँ तो लगता है एक्जाम कम होने की जगह बढ़ते जा रहे हैं.
आज कल कैट के चर्चे आम हैं. बड़ा डर लगता है, आज क्लास में कंपीट करो, कल बोर्ड में और परसों ये कैट सैट. क्या कभी इन एक्जाम से फुरसत होगी. पापा को आये दिन प्रेजेंटेशन बनाते देखते हूँ तो लगता है, एक्जाम तो नौकरी में भी पीछा नहीं छोड़ते.
खैर, कल मेरे दूसरे टर्म एक्जाम खत्म हुये हैं और मैं खुश हूँ. एक दो दिन पढाई से मुक्ति. कल किताब की दुकान गई और कई सारी किताब खरीदी. अरे पढाई की नहीं, कहानी की, नैंसी ड्रू की क्लोज एनकाउंटरस और एनिड ब्लाएटन की नोटियस्ट गर्ल. लेकिन उन्हें देख पापा कहने लगे, अरे बेटा अपने आप को अपग्रेड करो. कुछ सीरियस पढा करो. डिस्कवरी आफ इंडिया पढो. मैंने कहा, पापा डिस्कवर ही तो हो रहा है सब कुछ, इंडिया हो या दुनियां. हर किताब एक नई दुनियां डिस्कवर करती है.
सम्यक भी एक किताब लाई है, एनिड ब्लाएटन की एडवेंचरस आफ विशिंग चैयर. कास हमारे पास भी एक ऐसी चैयर होती जो हमारी विश पूरी करती. क्या विश ? ये तो पता नहीं. अभी तो मुझमें और सम्यक में कम्पटीशन है, कौन पहले किताब पूरी करता है. केवल आज का दिन है, कल से तो फिर वही ब्राउन कवर की टैक्स्ट बुक पढनी हैं.
Tuesday, November 17, 2009
रस्किन बांड से मुलाकात
मैं जब मसूरी घूमने गयी तो मेरी इच्छा सुंदर पहाड, झरने और जंगल देखने की तो ठीक हीसाथ ही मेरा मेन था मैं थोडे दिन पहले पढी द ब्लू अम्ब्रेला ( जिस पर बाद में फिल्म भी बनी ) के लेखक रस्किन बांड से मिलूं.बच्चों के चहेते रस्किन बांड यूँ तो अंग्रेज हैं पर इनका जन्म हिमाचल प्रदेश के कसौली में हुआ था और पिछले कई दशक से मसूरी उनका घर है. मैंने पापा से कहा चलो पापा पहले उनसे मिल लेते हैं और पापा भी मान गये. हमें पता था कि वे लंदौर में रहते हैं पर सही पता नहीं था. पर वे मसूरी के सबसे प्रसिद्ध नागरिक हैं सो आसनी से उनका घर मिल गया. मैंने डरते डरते घंटी बजाई, पता नहीं वे मिलेंगे कि नहीं. एक मैडम ने दरवाजा खोला, बताने पर कहा, क्या आपके पास एपांटमेंट है. हमने कहा, नहीं. उन्होंने कहा, उनकी तबियत ठीक नहीं और वे अंदर चली गयीं. हमें लगा कि मिलना होगा नहीं. पर मेरी खुशी का ठिकाना न रहा जब मैंने देखा, उधर से रस्किन बांड चले आ रहे हैं. मैंने, नमस्ते की. उन्होंने मुझसे प्यार से बातें की. मैंने अपनी आटोग्राफ बुक सामने की तो उन्होंने अपने हस्ताक्षर तो किये ही साथ में एक संदेश भी लिख दिया. इतने में पापा ने फोटो खींच ली और हम थैंक्स कह कर लौट आये.
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